दौर-ए-फिराक हमनें अक्सर ऐसे गुज़ारे हैं
करवटें बदली कभी सिलवटों के लिए सहारे हैं
हिस्से अपने ना आ पाई रफ़ाक़त उनकी कभी
अहसास-ए-लम्स अक्स उनका ज़हन में संवारें हैं
रेग्ज़ार-ए-दिल को दरिया ना हासिल हो पाया कभी
ज़ब्त-ए-गम अश्कों को ना फिर पलकों से उतारे हैं
©Dr Shefali Sharma
दौर-ए-फिराक हमनें अक्सर ऐसे गुज़ारे हैं
करवटें बदली कभी सिलवटों के लिए सहारे हैं.......
दौर-ए-फिराक- time of separation जुदाई का वक्त
रफ़ाक़त-companionship
अहसास-ए-लम्स- sense of touch, छूने का अहसास
रेग्ज़ार-ए-दिल-दिल का रेगिस्तान
ज़ब्त-ए-गम-दुःख प्रकट ना करना