साची बात मुंह पै कहण तै,,कदे भी घबराइयो ना। शेर-सा | हिंदी Shayari

"साची बात मुंह पै कहण तै,,कदे भी घबराइयो ना। शेर-सांप और जाट कदे भी,,सूत्ता ठाइयो ना।।(टेक) घणी मुंह ना लाणा चहिए,,बीर बदकारां नै राह चलते तै ना दिखाओ,,घर के रसोई-चुबारां नै यार बणाकै जारां नै,,अपणी कद्र घटाइयो ना।। छोड़ सको तो छोड़ दियो,,नशे नाश की राही नै भेद कदे ना दियो घर का,,किसे यार सिपाही नै आपसी घर की लड़ाई नै,,कदे बाहर बताइयो ना। कोई जरूरत नहीं खामखा,,किसे के गीतड़े गाण की ब्याह घाली छोरी तै ना दियो,,इजाजत ठेके ठाण की एकली बीर नै पीहर जाण की,,आदत लाइयो ना।। जीन्स गेल जचै नही चूड़ा,,नई ब्याही नार का सिर पै चुन्नी तै बेरा पटज्या,,आच्छे संस्कार का मार पाछै पुकार का,,कदे ढोंग रचाइयो ना। आपणे-अपणे छोरयां तै,,बस इतणा बोल दियो सबकी इज्जत एक सरी,,किसे की ना रोळ दियो घाल गले म्हं ढोल दियो,,पर गलत बजाइयो ना।। आगे की परमात्मा जाणै,,मैं बस जाणू आज की सदा औलाद नै सेधया करै,,माया ब्याज की 'गुरमीत मान' कसम साज की,,कदे भी गंदा गाइयो ना। ©SUNIL SAXENA SIWAN"

 साची बात मुंह पै कहण तै,,कदे भी घबराइयो ना।
शेर-सांप और जाट कदे भी,,सूत्ता ठाइयो ना।।(टेक)

घणी मुंह ना लाणा चहिए,,बीर बदकारां नै
राह चलते तै ना दिखाओ,,घर के रसोई-चुबारां नै 
यार बणाकै जारां नै,,अपणी कद्र घटाइयो ना।।

छोड़ सको तो छोड़ दियो,,नशे नाश की राही नै
भेद कदे ना दियो घर का,,किसे यार सिपाही नै
आपसी घर की लड़ाई नै,,कदे बाहर बताइयो ना।

कोई जरूरत नहीं खामखा,,किसे के गीतड़े गाण की
ब्याह घाली छोरी तै ना दियो,,इजाजत ठेके ठाण की
एकली बीर नै पीहर जाण की,,आदत लाइयो ना।।

जीन्स गेल जचै नही चूड़ा,,नई ब्याही नार का
सिर पै चुन्नी तै बेरा पटज्या,,आच्छे संस्कार का
मार पाछै पुकार का,,कदे ढोंग रचाइयो ना।

आपणे-अपणे छोरयां तै,,बस इतणा बोल दियो
सबकी इज्जत एक सरी,,किसे की ना रोळ दियो
घाल गले म्हं ढोल दियो,,पर गलत बजाइयो ना।।

आगे की परमात्मा जाणै,,मैं बस जाणू आज की
सदा औलाद नै सेधया करै,,माया ब्याज की
'गुरमीत मान' कसम साज की,,कदे भी गंदा गाइयो ना।

©SUNIL SAXENA SIWAN

साची बात मुंह पै कहण तै,,कदे भी घबराइयो ना। शेर-सांप और जाट कदे भी,,सूत्ता ठाइयो ना।।(टेक) घणी मुंह ना लाणा चहिए,,बीर बदकारां नै राह चलते तै ना दिखाओ,,घर के रसोई-चुबारां नै यार बणाकै जारां नै,,अपणी कद्र घटाइयो ना।। छोड़ सको तो छोड़ दियो,,नशे नाश की राही नै भेद कदे ना दियो घर का,,किसे यार सिपाही नै आपसी घर की लड़ाई नै,,कदे बाहर बताइयो ना। कोई जरूरत नहीं खामखा,,किसे के गीतड़े गाण की ब्याह घाली छोरी तै ना दियो,,इजाजत ठेके ठाण की एकली बीर नै पीहर जाण की,,आदत लाइयो ना।। जीन्स गेल जचै नही चूड़ा,,नई ब्याही नार का सिर पै चुन्नी तै बेरा पटज्या,,आच्छे संस्कार का मार पाछै पुकार का,,कदे ढोंग रचाइयो ना। आपणे-अपणे छोरयां तै,,बस इतणा बोल दियो सबकी इज्जत एक सरी,,किसे की ना रोळ दियो घाल गले म्हं ढोल दियो,,पर गलत बजाइयो ना।। आगे की परमात्मा जाणै,,मैं बस जाणू आज की सदा औलाद नै सेधया करै,,माया ब्याज की 'गुरमीत मान' कसम साज की,,कदे भी गंदा गाइयो ना। ©SUNIL SAXENA SIWAN

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