सुबह का वक़्त काम की तलाश
कुछ ऐसे दिहाड़ी मजदूर के हालात
न सर्दी में रुकता है ना गर्मी में रुकता है
हर वक़्त काम की तलाश में भटकता है
मिले दो वक्त की रोटी परिवार को
इसलिए दिनभर में मेहनत करता है
मजबूर है इसलिए वो मजदुर है
पर तुम ना भूलो की इंसान का ही रूप है
जो मेहनत का तुम मोलभाव करते है
तो क्यों खुद वो मेहनत करने से डरते हो
ओर वो है इसलिए ये मकान है दुकान है
सर्दी की ठंड में गर्मी के पसीने में काम करना कहा आसान है
©Prince~"अल्फ़ाज़"
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