वह वक्त जो गुज़र गया है।
लम्हा लम्हा सॅंवर गया है।
उम्रभर साथ देना चाहा,
पल में सब बिखर गया है।
यादों की कश्ती कब तलक
साहिल तन्हा सिहर गया है।
वो यादों से जा न सके दूर,
जैसे अभी इक पहर गया है।
तन्हाई की आड़ में हैं 'मनीष'
तन्हा रहके सब पसर गया है।
©मनीष कुमार पाटीदार
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