"घर जल रहा मेरा ख़ुद को बचाने की जद में
अब ख़ाक की राख तक न सिमट रही उस जद में!
काश.... की करिश्मा कुछ यूँ हो मेरे राम,
दो-दो हाथ हो ही जाएँ जिंदगी से हारने की जद में।
मुमकिन है रोएँगे कुछ दूर सोनू,
पर किसी को मरम तक न रहे मेरे होने न होने की जद में
©अभिषेक मिश्रा "अभि"
"