कद न अंगुष्ट सा
मन बैरी दुष्ट सा
नैनों से नीर ले
पैरों को पीर दे
चर्म चर्म चीर के..
आप में संतुष्ट सा
अंग अंग रुष्ट सा...
मन बैरी दुष्ट सा...
करता मनमानी है
आफत में प्राणी है..
इसकी ना मानी तो
काया को हानी है
रोग लगे कुष्ट सा..
मन बैरी दुष्ट सा..
अवलम्बित देह का
स्वारथ के नेह का
प्रेरक प्रमेह का
सत्य में संदेह सा
छिन छिन में पुष्ट सा..
मन बैरी दुष्ट सा..
संगी एकांत का
प्यासा देहांत का
मृत्यु तक छोड़े ना..
दामन भी तोड़े ना..
उददंड अतुष्ट सा...
मन बैरी दुष्ट सा..
©अज्ञात
#मन