White
विधा- मुक्तक
आकुल धरती मेघ से, करती नित अरदास।
सुनो सजनवा मेघ रे, बरस बुझाओ प्यास।
जीव- जन्तु बेहाल हैं, बढ़े दिनों दिन ताप-
रिमझिम रस के धार की, लागी तुमसे आस।।
सूख रहे सब ताल अब, नदियाँ पोखर झील।
प्यास बुझाने के लिए, चलते मीलों मील।
तप्त धरा अब रो रही, अंबर से है आस-
पड़ी दरारें खेत में, करदो माटी गील।।
सुनीता सिंह सरोवर
©Sunita Singh
#sad_shayari