चेहरे की हंसी दिखावट सी हो रही है
असल जिंदगी भी बनावट सी हो रही है। अनबन बढ़ती जा रही है रिस्तों में भी
अब अपनों से भी बगावत सी हो रही है।
पहले ऐसा था नहीं ऐसा हुॅ
आजकल मेरी कहानी कोई कहावत सी हो रही है।
दुरी बढ़ती जा रही है मंजिल से मेरी चलते-चलते भी थकावट सी महसूस हो रही है।
शब्द कम पड़ रहे है मेरी बातों में भी
खामोशी की जैसे मिलावट सी हो रही है।
और मशवरे की आदत ना रही लोगो को अब गुजारिश भी शिकायत सी हो रही है।
©GajendraSingh
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