"जज़्बात मोहब्बत के दिल भूल गया है शायद ,
बेहिस मेरा दिल मुझ में दफ़्न पड़ा है शायद ।
मोहब्बत के नाम पर लूटते देखी है अस्मत ,
उस वहशत से दिल बुरी तरह डरा है शायद ।
अपने ही हाथों मैं क़त्ल कर बैठा हूं खुद को ,
इस बात पे एक शख़्स बहुत रूठा है शायद ।
उसके आने पर मेरी लाश भी सांस लेने लगी ,
वो इंसां नहीं ख़ुदा का कोई मसीहा है शायद ।
उसे देख क़ब्र से निकल चलने लगा था कोई ,
वो ज़िंदगी को रोशनी देता सितारा है शायद ।"