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बहर : 22 22 22 22 22 2
क़्वाफ़ी: आई का स्वर
रदीफ़: बारिश में
किसने ऐसी तान सुनाई बारिश में
बीता आधा साल जुलाई बारिश में।।
हर कोई खुशहाल हुआ है बारिश में
दादुर की भी आज सगाई बारिश में।।
रोज कमाकर खाने वाला कुनबा तो
भूखा सोया नींद न आई बारिश में।।
छमछम बूंदें, चमचम बिजली, धकधक दिल
प्रेम भरी मस्ती है छाई बारिश में।।
भीग रहा है हर कोई इक मस्ती में
मैं भी छाता लेकर आई बारिश में।।
पानी जैसे काल हुआ है तुम देखो
आफ़त कैसी सिर पर आई बारिश में।।
'रूमू' का बचपन लौटा है फिर से अब,
कागज़ की कश्ती तैराई बारिश में।।
प्रियंका झा ®️
सीतामढ़ी, बिहार
©प्रियंका
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