फिर मुलाक़ात, आओ बैठो पास मेरे,
शायद यह आखिरी मुलाकात है,
फिर से शायद ही तुम्हरी आवाज मेरे कानों में,
मिश्री की मिठास घोले,
तुम्हारा टूटकर मुस्कुराना,
शायद ही अब मेरे निगाहों में चमके,
बातों का हौले हौले,
खमोशी में ढल जाना,
मुलाकातों का चुपके से,
मुहब्बत में पिघल जाना,
शायद ही अब कभी हो,
आओ बैठो पास मेरे,
शायद यह आखिरी मुलाकात है।
©Prashant Roy
शायद फिर अब मुलाकात न हो।