खुल रहे है दरवाज़े नए, छंट रहे है सर से बादल घने, | हिंदी Shayari

"खुल रहे है दरवाज़े नए, छंट रहे है सर से बादल घने, ख्वाबों की बौछार मे धूल गए, पेहने थे जो ऐनक धूल से सने... ©Khushi"

 खुल रहे है दरवाज़े नए,
छंट रहे है सर से बादल घने,
ख्वाबों की बौछार मे धूल गए, 
पेहने थे जो ऐनक धूल से सने...

©Khushi

खुल रहे है दरवाज़े नए, छंट रहे है सर से बादल घने, ख्वाबों की बौछार मे धूल गए, पेहने थे जो ऐनक धूल से सने... ©Khushi

New rays of hope...
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