क्या दास्तान लिखूं इन शहीदो की
जिन्होने वतन के लिये अपनी कुर्बानी दे दी
जो देख नही सकते थे,भारत को जकडा हुआ
खुद को बेडियो मे जकडे,नारे लगाते थे गली-गली
सिर्फ अज़ादी ही मकसद नही थी इन शूरवीरो का
भारत को एक-जुट होता देखना ख्वाब था इन वीरो का
बचपन से जवानी तक लबो पर एक ही शब्द था
वन्दे मतरम वन्दे मातरम एक ही नारा था
ना आन्खो मे डर था ना दिल कमजोर था
बस गोरो को उनकी औकात दिखाने का जज्बा था
भूके प्यासे कितने ही दिन रहे जेलो मे
प्राण त्याग दिये पर अपने प्रण पर अटल रहे
ना सोचा ना समझा बस वतन से मुहब्बत कर ली
इन क्रान्तीकारियो ने बचपन से ही मौत को अपनी दुल्हन समझ ली
अग्रेजो ने इनकी मौत की तारिख भी तय कर दी
भगत सिंह,सुखदेव ओर राजगुरु को धोके से फान्सी दे दी
इतने अत्याचार होने पर भी जो डगमगाये नही
आज ही के दिन वो फान्सी पर लटकते मुस्कराते रहे
आखिरी सासं भी जिनकी इन्कलाब ज़िन्दाबाद बोलती रही
मै उसी देश की बेटी हुं जिसकी लिखते लिखते आन्खे नम हो गई!!
©Bh@Wn@ Sh@Rm@
#शहीदी २४ मार्च