मेरे होकर भी,कभी तुम मेरे हो नही पाये, साथ रहे हरद | हिंदी Shayari

"मेरे होकर भी,कभी तुम मेरे हो नही पाये, साथ रहे हरदम मगर ये एहसास दिला नही पाये। कैसे कहूं महफिल में?कि तुम मेरे हो सनम, मेरे जख्मों पर मरहम तुम कभी लगा नही पाए।। ©आलोक अग्रहरि"

 मेरे होकर भी,कभी तुम मेरे हो नही पाये,
साथ रहे हरदम मगर ये एहसास दिला नही पाये।

कैसे कहूं महफिल में?कि तुम मेरे हो सनम,
मेरे जख्मों पर मरहम तुम कभी लगा नही पाए।।

©आलोक अग्रहरि

मेरे होकर भी,कभी तुम मेरे हो नही पाये, साथ रहे हरदम मगर ये एहसास दिला नही पाये। कैसे कहूं महफिल में?कि तुम मेरे हो सनम, मेरे जख्मों पर मरहम तुम कभी लगा नही पाए।। ©आलोक अग्रहरि

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