उस रात कुछ ऐसा हुआ , हो रही थी गुफ्तगू , महफ़िल मे | हिंदी Poetry

"उस रात कुछ ऐसा हुआ , हो रही थी गुफ्तगू , महफ़िल में उसकी लोगों से , महफ़िल थी उसकी , वो जो कहता रहा , लोग सुनते रहे , हम भी थे सुनने वालों में , उसे शायद ये ध्यान न था , या पता नहीं , उसने हमें भी लोगों में गिन लिया था , उस रात कुछ ऐसा हुआ.. उसने जो कहा महफ़िल में , वो भूल गया , हमने जो सुना महफ़िल में , हमे याद रहा , हां उस रात ऐसा ही हुआ था । ©Mohini Shukla"

 उस रात कुछ ऐसा हुआ ,
हो रही थी गुफ्तगू ,
महफ़िल में उसकी लोगों से ,
महफ़िल थी उसकी ,
वो जो कहता रहा ,
लोग सुनते रहे ,
हम भी थे सुनने वालों में ,
उसे शायद ये ध्यान न था ,
 या पता नहीं ,
उसने हमें भी लोगों में गिन लिया था ,
उस रात कुछ ऐसा हुआ..
उसने जो कहा महफ़िल में ,
वो भूल गया ,
हमने जो सुना महफ़िल में ,
हमे याद रहा ,
हां उस रात ऐसा ही हुआ था ।

©Mohini Shukla

उस रात कुछ ऐसा हुआ , हो रही थी गुफ्तगू , महफ़िल में उसकी लोगों से , महफ़िल थी उसकी , वो जो कहता रहा , लोग सुनते रहे , हम भी थे सुनने वालों में , उसे शायद ये ध्यान न था , या पता नहीं , उसने हमें भी लोगों में गिन लिया था , उस रात कुछ ऐसा हुआ.. उसने जो कहा महफ़िल में , वो भूल गया , हमने जो सुना महफ़िल में , हमे याद रहा , हां उस रात ऐसा ही हुआ था । ©Mohini Shukla

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