जब पूरे ही नहीं होने होते तो ये ज़िंदगी ख़्वाब क् | हिंदी कविता

"जब पूरे ही नहीं होने होते तो ये ज़िंदगी ख़्वाब क्यों दिखाती हैं दिन निकलता है ज़िंदगी की धूप के साथ रात भी तुझे याद किये बिना नहीं जाती क्या सितम है के तेरी ख़ुशबू अब भी तेरे दिये हुए गुलाबों से आती हैं जा रहीं हों, ठीक है, चले जाओ आख़िर जान कब किसी के बस में रह पाती हैं अब ये बताओ कि अगर किसी को अकेला चलना पड़े तो ये राहें ज़्यादा तो नहीं सताती है पर रहियो तुम ख़ुश जहां भी रहो ले जाओ ये भी दुआ अगर तुम्हारे काम आती हैं Mahi Arora"

 जब पूरे ही नहीं होने होते 
तो ये ज़िंदगी ख़्वाब क्यों दिखाती हैं
दिन निकलता है ज़िंदगी की धूप के साथ 
रात भी तुझे याद किये बिना नहीं जाती 
क्या सितम है के तेरी ख़ुशबू 
अब भी तेरे दिये हुए गुलाबों से आती हैं 
जा रहीं हों, ठीक है, चले जाओ
आख़िर जान कब किसी के बस में रह पाती हैं 
अब ये बताओ कि अगर किसी को अकेला चलना पड़े
तो ये राहें ज़्यादा तो नहीं सताती है 
पर रहियो तुम ख़ुश जहां भी रहो
ले जाओ ये भी दुआ अगर तुम्हारे काम आती हैं

Mahi Arora

जब पूरे ही नहीं होने होते तो ये ज़िंदगी ख़्वाब क्यों दिखाती हैं दिन निकलता है ज़िंदगी की धूप के साथ रात भी तुझे याद किये बिना नहीं जाती क्या सितम है के तेरी ख़ुशबू अब भी तेरे दिये हुए गुलाबों से आती हैं जा रहीं हों, ठीक है, चले जाओ आख़िर जान कब किसी के बस में रह पाती हैं अब ये बताओ कि अगर किसी को अकेला चलना पड़े तो ये राहें ज़्यादा तो नहीं सताती है पर रहियो तुम ख़ुश जहां भी रहो ले जाओ ये भी दुआ अगर तुम्हारे काम आती हैं Mahi Arora

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