बेबफा नहीं गद्दार थी वो ना जाने कितनों की यार थी,
इश्क मोहब्बत की नहीं जिस्मों की तलबगार थी।
जिसकी थी उसकी कभी हो ना सकी,
किसी की कभी हो ना सकी पैसों की मोहताज थी।
लोगों के दिलों से खेलना उसकी फितरत थी,
इंसान नहीं वो आस्तीन का सांप थी।
कर के वादा मुकर जाना जैसे उसकी आदत थी,
बेवफा नहीं गद्दार थी वो कमबख्त ना जाने कितनों की यार थी।
©ARIN
#जिंदगी