ये सर्द हवायें , मुझे कब के चिर के पार हो जातीं ; | हिंदी शायरी
"ये सर्द हवायें , मुझे कब के चिर के पार हो जातीं ;
अगर मेरे बदन पर कम्बल न होता।
ये ज़ालिम दुनिया ,मुझे कब के मिटा डालती।
अगर मेरे सर पर तेरा हाथ न होता।
माँ"
ये सर्द हवायें , मुझे कब के चिर के पार हो जातीं ;
अगर मेरे बदन पर कम्बल न होता।
ये ज़ालिम दुनिया ,मुझे कब के मिटा डालती।
अगर मेरे सर पर तेरा हाथ न होता।
माँ