पिता तो जानते है दुनियादारी, सबसे ज्यादा समझ होती है उनमें, अगर वाकई होता पितृ सत्तात्मक समाज तो हर बेटी कामयाब काबिल, शोषण ना सहने वाली, बेखौफ, आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी होती।
बचपन से जवानी, जीवन के हर पग पर नारी को कम आंका कम बताया,खुद पर भरोसा न करना सिखाया, चुप रहना, बुराई सहना सिखाया, घर के काम इसकी राजनीति में उलझाया, बेटियों का आत्मविश्वास आत्मसम्मान छोटी छोटी बातो से तोड़ा, कभी उनका साथ न दिया, केवल अक्षर ज्ञान दिया वो भी न जाने किस तरह,
समाज रीति रिवाज परंपरा संस्कार मर्यादा से जकड़ा इन्सान केवल जिंदा रह जाए तो भी जीवन की महानतम उलपब्धि होती है।
अपने घर की नारी में कोई हिम्मत हौसला नहीं भरते बल्कि उन्हें और दबाकर रखते है हमारी एक आवाज एक इशारे पर उठे,बैठे उतना ही बोले,इस तरह के परिवेश में हम रखते है। बहुत ही शर्मनाक हरकत है ये हमारे आधुनिक जमाने हमारी शिक्षा और हमारे धर्म,संस्कृति के लिए।🤦
आज जो बेटियां कमाने से या अपनी बुद्धि से फैसला लेने के काबिल होगी उन्हीं माता पिता को माता पिता कहा जायेगा और जो भाई और इस मॉडर्न जमाने का युवा ये समझेगा कि जितना आजाद घूमना पढ़ना बोलना कमाना उसके लिए जरूरी है बहन के लिए भी जरूरी है,