कभी कभी यूँ लगता है जैसे हम पुरुष स्त्री को सिर्फ | हिंदी कविता

"कभी कभी यूँ लगता है जैसे हम पुरुष स्त्री को सिर्फ सांत्वना देने के लिए उसे पुरुषों के बराबर या पुरुषों से आगे बता देते हैं ताकि वो उग्र ना हो, पर कुछ दृश्य ये साबित कर देते हैं कि स्त्री का बराबरी पर आना पुरुषवर्ग की आँखो को नहीं भाता.. "ये भेदभाव हम क्यों चाह कर भी नहीं मिटा पाते"?? ©aman soni"

 कभी कभी यूँ लगता है जैसे हम पुरुष स्त्री को
 सिर्फ सांत्वना देने के लिए उसे पुरुषों के बराबर 
या पुरुषों से आगे बता देते हैं ताकि वो उग्र ना हो,
पर कुछ दृश्य ये साबित कर देते हैं कि स्त्री का
 बराबरी पर आना पुरुषवर्ग की
  आँखो को नहीं भाता.. 

    "ये भेदभाव हम क्यों चाह कर भी नहीं मिटा पाते"??

©aman soni

कभी कभी यूँ लगता है जैसे हम पुरुष स्त्री को सिर्फ सांत्वना देने के लिए उसे पुरुषों के बराबर या पुरुषों से आगे बता देते हैं ताकि वो उग्र ना हो, पर कुछ दृश्य ये साबित कर देते हैं कि स्त्री का बराबरी पर आना पुरुषवर्ग की आँखो को नहीं भाता.. "ये भेदभाव हम क्यों चाह कर भी नहीं मिटा पाते"?? ©aman soni

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