चलना नियति है हमारी
दो साँसों के बीच ये जारी
बादल को क्यों बांधना चाहो
क्यों नश्वर को तुम साधना चाहो
उमड़ घुमड़ कर बरसना चाहूं
हरी धरा को तरसना चाहूं
हवा बन फिर उड़ जाना है
ख़ुद ही ख़ुद से जुड़ जाना है
कहती हो तुम्हें प्रेम नहीं है
क्यों किसी से स्नेह नहीं है
बादल बन कर जब आती हो
आँखों से फिर बह जाती हो...
बादल बनकर जो आ जाती हो
आंखों की नमी फिर बन जाती हो
प्रेम तुम्हें भी हुआ था इतना
करता अम्बर धरा से जितना
किसकी यादों में झूम रही हो
खोज में बादल बन घूम रही हो
#फीलिंग्स bad