खुदा की रहमत इंसान तो कब का मर चुका है साहब.. यहां | हिंदी विचार

"खुदा की रहमत इंसान तो कब का मर चुका है साहब.. यहां तो जाति और धर्म जिंदा है! ©Shahil ansari"

 खुदा की रहमत इंसान तो कब का मर चुका है साहब..
यहां तो जाति और धर्म जिंदा है!

©Shahil ansari

खुदा की रहमत इंसान तो कब का मर चुका है साहब.. यहां तो जाति और धर्म जिंदा है! ©Shahil ansari

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