इक इक अंक जोड़ता हूँ मैं चाहत के, और तुम हो इक साथ | हिंदी शायरी

"इक इक अंक जोड़ता हूँ मैं चाहत के, और तुम हो इक साथ घटाया करते हो । मुझको अब तक प्यार के माने पता नही, तुम हो कि नफरत का पहाड़ा पढ़ते हो । -दुर्गेश कसौधन"

 इक इक अंक जोड़ता हूँ मैं चाहत के,
और तुम हो इक साथ घटाया करते हो ।
मुझको अब तक प्यार के माने पता नही,
तुम हो कि नफरत का पहाड़ा पढ़ते हो ।


-दुर्गेश कसौधन

इक इक अंक जोड़ता हूँ मैं चाहत के, और तुम हो इक साथ घटाया करते हो । मुझको अब तक प्यार के माने पता नही, तुम हो कि नफरत का पहाड़ा पढ़ते हो । -दुर्गेश कसौधन

#Light 🌹Adhoori Khwahish🌹 @aalvi_2108 @Shuja Anwar @MR. Pandit @Mr.pandit

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