ख़ामोशी में शोर मचाती ये ख़ामोशी ।
है सारे सुकून की तबाही ये ख़ामोशी ।
रूह का लिबास उधेड़ती ये ख़ामोशी ।
अक़्स में वजूद तलाशती ये ख़ामोशी ।
दिल में मोहब्बत और नज़र में नफ़रत ,
अहसास पर सुई चुभोती ये ख़ामोशी ।
एक सवाल और उसके जवाब हज़ार ,
यूँ कशमकश से बतियाती ये ख़ामोशी ।
कभी इस डगर तो कभी उस डगर ,
है राह - राह भटक रही ये ख़ामोशी ।
लिए अश्क़ , घबराहट , उलझनें तमाम ,
अपने ही दर पे बिलखती ये ख़ामोशी ।
ज़ज़्बात के दर ठोकर खाकर फिर ,
अपने ही शाने संभलती ये ख़ामोशी ।
'हाना'सिले लब भी करते हैं बातें बहुत ,
ख़ुदा जाने कैसी है चुप्पी ये ख़ामोशी ।
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