ख़ामोशी में शोर मचाती ये ख़ामोशी । है सारे सुकून की | हिंदी Poetry

"ख़ामोशी में शोर मचाती ये ख़ामोशी । है सारे सुकून की तबाही ये ख़ामोशी । रूह का लिबास उधेड़ती ये ख़ामोशी । अक़्स में वजूद तलाशती ये ख़ामोशी । दिल में मोहब्बत और नज़र में नफ़रत , अहसास पर सुई चुभोती ये ख़ामोशी । एक सवाल और उसके जवाब हज़ार , यूँ कशमकश से बतियाती ये ख़ामोशी । कभी इस डगर तो कभी उस डगर , है राह - राह भटक रही ये ख़ामोशी । लिए अश्क़ , घबराहट , उलझनें तमाम , अपने ही दर पे बिलखती ये ख़ामोशी । ज़ज़्बात के दर ठोकर  खाकर फिर , अपने ही शाने  संभलती ये ख़ामोशी । 'हाना'सिले लब भी करते हैं बातें बहुत , ख़ुदा जाने  कैसी है चुप्पी ये ख़ामोशी ।"

 ख़ामोशी में शोर मचाती ये ख़ामोशी ।
है सारे सुकून की तबाही ये ख़ामोशी । 

रूह का लिबास उधेड़ती ये ख़ामोशी ।
अक़्स में वजूद तलाशती ये ख़ामोशी ।

दिल में मोहब्बत और नज़र में नफ़रत , 
अहसास पर सुई चुभोती ये ख़ामोशी । 

एक सवाल और उसके जवाब हज़ार ,
यूँ कशमकश से बतियाती ये ख़ामोशी ।

कभी इस डगर तो कभी उस डगर , 
है राह - राह भटक रही ये ख़ामोशी ।

लिए अश्क़ , घबराहट , उलझनें तमाम ,
अपने ही दर पे बिलखती ये ख़ामोशी ।

ज़ज़्बात के दर ठोकर  खाकर फिर , 
अपने ही शाने  संभलती ये ख़ामोशी ।

'हाना'सिले लब भी करते हैं बातें बहुत ,
ख़ुदा जाने  कैसी है चुप्पी ये ख़ामोशी ।

ख़ामोशी में शोर मचाती ये ख़ामोशी । है सारे सुकून की तबाही ये ख़ामोशी । रूह का लिबास उधेड़ती ये ख़ामोशी । अक़्स में वजूद तलाशती ये ख़ामोशी । दिल में मोहब्बत और नज़र में नफ़रत , अहसास पर सुई चुभोती ये ख़ामोशी । एक सवाल और उसके जवाब हज़ार , यूँ कशमकश से बतियाती ये ख़ामोशी । कभी इस डगर तो कभी उस डगर , है राह - राह भटक रही ये ख़ामोशी । लिए अश्क़ , घबराहट , उलझनें तमाम , अपने ही दर पे बिलखती ये ख़ामोशी । ज़ज़्बात के दर ठोकर  खाकर फिर , अपने ही शाने  संभलती ये ख़ामोशी । 'हाना'सिले लब भी करते हैं बातें बहुत , ख़ुदा जाने  कैसी है चुप्पी ये ख़ामोशी ।

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