तू पीर है फ़क़ीर है
भक्तों की लकीर है
त्रिनेत्र है ललाट पे
जटा में बांधे गंगा नीर है
नील है कंठ तेरा
आदि है न अंत तेरा
बदन पर रगड़े भस्म तू
हर श्मशान में है वास तेरा
है चंद्रमा जटाओं में
रूद्र है भुजाओं में
देव हो या दैत्य हो
तुझे पूजे हर दिशाओं में
तू प्रेम की मिसाल है
ब्रह्मांड से विशाल है
तेरे सुर से और ताल से
मिट रहा अकाल है
तांडव तेरा नृत्य है
बदन पे खाल अलंकृत है
भूत हो पिशाच हो, देव हो या दैत्य हो
तेरी सभा में सारे एकीकृत है
कौरवों का काल तू
पांडवों की ढाल है
तू सोम भी और रौद्र भी
तुझे कहते महाकाल है
©Nishant Singh Rajput
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