White बाज़ार की चहल पहल देखने मे दिन ग़ुजर जाता | हिंदी Poetry

"White बाज़ार की चहल पहल देखने मे दिन ग़ुजर जाता हैँ मेरा किसी तरह मंदिरो मे जाकर माथा टेकने की मेरे पास फुरसत हैँ कहा ? ये मेहरबानी हैँ उस पर्वरदिगार की कि उसने. मुझे जीने का अवसर नवाज़ा हैँ वरना इस तगदिल दुनिया मे खुदक्शी करने की जगह बची हैँ कहा? ©Parasram Arora"

 White बाज़ार की चहल पहल  
देखने  मे  दिन ग़ुजर 
जाता हैँ  मेरा किसी तरह 

मंदिरो मे जाकर 
माथा टेकने  की मेरे 
पास फुरसत हैँ कहा ?

ये मेहरबानी हैँ उस 
पर्वरदिगार की कि 
उसने. मुझे जीने का  
अवसर नवाज़ा हैँ
 
वरना इस तगदिल 
दुनिया मे  खुदक्शी 
करने की जगह 
बची हैँ कहा?

©Parasram Arora

White बाज़ार की चहल पहल देखने मे दिन ग़ुजर जाता हैँ मेरा किसी तरह मंदिरो मे जाकर माथा टेकने की मेरे पास फुरसत हैँ कहा ? ये मेहरबानी हैँ उस पर्वरदिगार की कि उसने. मुझे जीने का अवसर नवाज़ा हैँ वरना इस तगदिल दुनिया मे खुदक्शी करने की जगह बची हैँ कहा? ©Parasram Arora

जगह बची हैँ कहा?

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