काँधे पर उठाए फिर रहे थे जो मेहनत का,
किसी लालची के दरबार मे वो सामान गिर गया है।
कभी माहिमा खाण्डववन की, कभी गुणगान इन्द्रप्रस्त का...
मुदात लगा कर बनाया था बुजुर्गो ने जो
वो नाम गिर गया है।
और बस के टिकट का मजदूरों से 8000?
सच में दिल्ली तेरा ईमान गिर गया है।।
_प्रशांत कुमार तिवारी
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