दिए जख्म इतने ,जो वापिस न किए तो कर्ज कैसा,
वो ही दर्द दे सिर्फ मुझको,मैं सहूं ये भी फर्ज कैसा !
टूटे बिखरे लोगों के दर्द न जान पाए,तो इंसान कैसा,
अटूट विश्वास से बना घर,क्षणिक टूट जाए मकान कैसा!
आए न महक किसी फूल से, तो वो फूल कैसा,
खुद ही बना के तोड़ दिया,तो यह असूल कैसा !
जहां महजब और पानी की नस्ल अलग, वो स्कूल कैसा,
किसी को इतना चाह कर छोड़ देना,ये रूल कैसा !
©Thakur Vivek Krishna
#boat