White ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है  जैसे | हिंदी मोटिवेश

"White ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है  जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है  जिस जगह पहले के ज़ख़्मों के निशान थे फिर उसी जगह फिर चोट मारी जा रही है  वक्त के साथ सब कुछ बदलता क्यूँ नहीं है  जिस्म से सिसक कर जान हमारी जा रही है  बोल कर तारीफ़ में कुछ शब्द ही उनसे आखिर  शख़्सियत अपनी जुबान की निखारी जा रही है  धूप के दस्ताने जैसे अपने हाथों में पहन कर  बर्फ़ की चादर मुखौटे से फिर उतारी जा रही है  ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है  जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है ©कुमार दीपेन्द्र"

 White ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है 
जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है 

जिस जगह पहले के ज़ख़्मों के निशान थे
फिर उसी जगह फिर चोट मारी जा रही है 

वक्त के साथ सब कुछ बदलता क्यूँ नहीं है 
जिस्म से सिसक कर जान हमारी जा रही है 

बोल कर तारीफ़ में कुछ शब्द ही उनसे आखिर 
शख़्सियत अपनी जुबान की निखारी जा रही है 

धूप के दस्ताने जैसे अपने हाथों में पहन कर 
बर्फ़ की चादर मुखौटे से फिर उतारी जा रही है 

ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है 
जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है

©कुमार दीपेन्द्र

White ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है  जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है  जिस जगह पहले के ज़ख़्मों के निशान थे फिर उसी जगह फिर चोट मारी जा रही है  वक्त के साथ सब कुछ बदलता क्यूँ नहीं है  जिस्म से सिसक कर जान हमारी जा रही है  बोल कर तारीफ़ में कुछ शब्द ही उनसे आखिर  शख़्सियत अपनी जुबान की निखारी जा रही है  धूप के दस्ताने जैसे अपने हाथों में पहन कर  बर्फ़ की चादर मुखौटे से फिर उतारी जा रही है  ज़िंदगी यूँ ही आजकल गुज़ारी जा रही है  जैसे कोई जंग फिर से हारी जा रही है ©कुमार दीपेन्द्र

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