एक बात को एक सही बता रहा।
दूसरा बात को ग़लत ठहरा रहा।
तीसरा लगी आग में घी डाल रहा।
चौथा आग बुझाने के प्रयास में है।
भीड़ खड़ी बस तमाशा देख रही।
दूर से अंजान बनी आँखे सेंक रही।
बात भी कोई देखो ऐसी ख़ास नही।
बढ़ गई जब तब कोई भी साथ नही।
सुलझाने की बजाय, उलझे जा रहें।
और नई बातों के पत्ते खुलते जा रहें।
रिश्ते-नाते हों या हो बात आपसदारी की।
बात बढ़ती है जब बात हो दुनियादारी की।
सभी का अपना अपना है एक संग यहाँ पर।
बात करने का अलग अलग है ढंग यहाँ पर।
©ALOK Sharma
#Marriage