मुझे उसकी ही गुड़िया से खेलना था मुझे उसकी ही किता | हिंदी कविता

"मुझे उसकी ही गुड़िया से खेलना था मुझे उसकी ही किताबों को पढ़ना था उसके जूते, उसकी बालियां, उसके कपडे ही पहन कर, कहीं भी निकलना था न मना किया, न कभी जिद पर अड़ी न रास्ते मे रोका, न कभी मुझसे लड़ी बस एक दिन सज सवर के रोते हुए मुझे अकेला छोड़, पिया के घर चल पड़ी अब किससे लड़ूँ , किससे शिकायतें करूँ ये चाहिए, वो चाहिए, भला अब किससे कहूँ ©Ruchi Mishra"

 मुझे उसकी ही गुड़िया से खेलना था 
मुझे उसकी ही किताबों को पढ़ना था 
उसके जूते, उसकी बालियां, उसके कपडे 
ही पहन कर, कहीं भी निकलना था 

न मना किया, न कभी जिद पर अड़ी 
न रास्ते मे रोका, न कभी मुझसे लड़ी  
बस एक दिन सज सवर के रोते हुए 
मुझे अकेला छोड़, पिया के घर चल पड़ी 

अब किससे लड़ूँ , 
किससे शिकायतें करूँ 
ये चाहिए, वो चाहिए, 
भला अब किससे कहूँ

©Ruchi Mishra

मुझे उसकी ही गुड़िया से खेलना था मुझे उसकी ही किताबों को पढ़ना था उसके जूते, उसकी बालियां, उसके कपडे ही पहन कर, कहीं भी निकलना था न मना किया, न कभी जिद पर अड़ी न रास्ते मे रोका, न कभी मुझसे लड़ी बस एक दिन सज सवर के रोते हुए मुझे अकेला छोड़, पिया के घर चल पड़ी अब किससे लड़ूँ , किससे शिकायतें करूँ ये चाहिए, वो चाहिए, भला अब किससे कहूँ ©Ruchi Mishra

#sister

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