सुनता हूँ रमजान माह का उदय हुआ अब पीला चाँद, मदिरा | हिंदी कविता

"सुनता हूँ रमजान माह का उदय हुआ अब पीला चाँद, मदिरालय की गलियों में अब फिर न सकूँगा कर फ़रियाद! मैं जी भर शाबान महीने पीलूँगा मदिरा इतनी, पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक रहे न रोज़ों की भी याद! © सुमित्रानंदन पंत"

 सुनता हूँ रमजान माह का
उदय हुआ अब पीला चाँद,
मदिरालय की गलियों में अब
फिर न सकूँगा कर फ़रियाद!
मैं जी भर शाबान महीने
पीलूँगा मदिरा इतनी,
पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक
रहे न रोज़ों की भी याद!
© सुमित्रानंदन पंत

सुनता हूँ रमजान माह का उदय हुआ अब पीला चाँद, मदिरालय की गलियों में अब फिर न सकूँगा कर फ़रियाद! मैं जी भर शाबान महीने पीलूँगा मदिरा इतनी, पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक रहे न रोज़ों की भी याद! © सुमित्रानंदन पंत

#रमज़ान

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