शृंगार__
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आप हैं तो मांग भरी है। जो विद्यमान वात्सल्य, स्नेह
आप हैं तो मंगलसूत्र बंधी है। कोमलता ,दया ।।
आप हैं तो बिंदी सजी है। है जो सहजता, सौम्यता, विनम्रता....
आपसे ही कलाइयों की खनक है। बनाए रखना तुम;
आपसे ही पायल की शोर है। क्यूंकि जीती तुझमें ये ______
आंखों की काजल; मेहंदी की लाली। लहलहाती, गुनगुनाती, बुदबुदाती तुझमें..
फूलों का गजरा; कानों में कुंडल। इठलाती, अकड़ती, गुमढ़ती..
बचपन में ही पीड़ाएं लिए बैठी है। ढूंढती अपना सर्वस्व तुममें।
आपसे ही नथ जुड़ी है। बस अपने समतुल्य रख स्नेह से हाथ फेर देना __
आपसे ही सोलह शृंगार; बिन कहे सारी बातें समझ लेना __
आपके लिए ही बत्तीस आभूषण।। इसके अस्तित्व को मिटने न देना।।
इस शृंगार के महत्ता को समझना तुम। क्यूंकि ये अपना सर्वस्व सौप देती तुमको।।
इसका मान रखना तुम।।
_Meri lekhni
©Beauty Kumari
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