"में देखरहा हु ज़िन्दगी बहार खड़ी है
पर दरवाजे पर कड़ी है
खिड़की से अपनी नज़रो से देख रहा हु
दुनियां के अजीब नज़ारे को
खाली पड़ी सड़के
बहती नदियों का साफ पानी
आज़ाद पंछी की आवाज़ें गूंज रही है आसमान में
लगरहा है जैसे प्रकृति का जन्म दुबारा हो रहा है
एक नया रुप लेकर आएगी ये प्रकृति की रचना
जब हम अपने आपको आज़ाद करेंगे तो एक नया खूबसूरत नज़ारा होगा
एक नई जिंदगी होगी
अब नई एक पहचान होगी इस दुनियां की
वक़्त दुबारा बदलेगा.
~vaibhav joshi~"