अपनी अपनी पीठ सभी थपथपा रहे हैं।
अपनी उपलब्धि की डफ़ली बजा रहे हैं।
लेकिन पूछो हाल तनिक बाजारों का-
वह तो अपनी अलग कहानी बता रहे हैं।
औरों की मेहनत को अपनी बता रहे हैं।
कामयाबी की लंबी फेहरिस्त गिना रहे हैं।
किया जिन्होंने उनकी नहीं है कोई क़ीमत-
लेकिन अपनी क़ीमत ऊँची उठा रहे हैं।
अपनी नाकामी नज़रों से छुपा रहे हैं।
पर करने वालों को फालतू बता रहे हैं।
ऊपर वाला ख़ुद को ख़ुदा समझ बैठा है-
नीचे वाले को सब नीचा दिखा रहे हैं।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
©Ripudaman Jha Pinaki
#आत्ममुग्धता