अपनी अपनी पीठ सभी थपथपा रहे हैं। अपनी उपलब्धि की ड | हिंदी कविता

"अपनी अपनी पीठ सभी थपथपा रहे हैं। अपनी उपलब्धि की डफ़ली बजा रहे हैं। लेकिन पूछो हाल तनिक बाजारों का- वह तो अपनी अलग कहानी बता रहे हैं। औरों की मेहनत को अपनी बता रहे हैं। कामयाबी की लंबी फेहरिस्त गिना रहे हैं। किया जिन्होंने उनकी नहीं है कोई क़ीमत- लेकिन अपनी क़ीमत ऊँची उठा रहे हैं। अपनी नाकामी नज़रों से छुपा रहे हैं। पर करने वालों को फालतू बता रहे हैं। ऊपर वाला ख़ुद को ख़ुदा समझ बैठा है- नीचे वाले को सब नीचा दिखा रहे हैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki"

 अपनी अपनी पीठ सभी थपथपा रहे हैं।
अपनी उपलब्धि की डफ़ली बजा रहे हैं।
लेकिन पूछो हाल तनिक बाजारों का-
वह तो अपनी अलग कहानी बता रहे हैं।

औरों की मेहनत को अपनी बता रहे हैं।
कामयाबी की लंबी फेहरिस्त गिना रहे हैं।
किया जिन्होंने उनकी नहीं है कोई क़ीमत-
लेकिन अपनी क़ीमत ऊँची उठा रहे हैं।

अपनी नाकामी नज़रों से छुपा रहे हैं।
पर करने वालों को फालतू बता रहे हैं। 
ऊपर वाला ख़ुद को ख़ुदा समझ बैठा है-
नीचे वाले को सब नीचा दिखा रहे हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki

अपनी अपनी पीठ सभी थपथपा रहे हैं। अपनी उपलब्धि की डफ़ली बजा रहे हैं। लेकिन पूछो हाल तनिक बाजारों का- वह तो अपनी अलग कहानी बता रहे हैं। औरों की मेहनत को अपनी बता रहे हैं। कामयाबी की लंबी फेहरिस्त गिना रहे हैं। किया जिन्होंने उनकी नहीं है कोई क़ीमत- लेकिन अपनी क़ीमत ऊँची उठा रहे हैं। अपनी नाकामी नज़रों से छुपा रहे हैं। पर करने वालों को फालतू बता रहे हैं। ऊपर वाला ख़ुद को ख़ुदा समझ बैठा है- नीचे वाले को सब नीचा दिखा रहे हैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#आत्ममुग्धता

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