वक्त के साथ थोड़ी मनमानिय मिट गई, बढ़ती जिम्मेवार | हिंदी Poetry

"वक्त के साथ थोड़ी मनमानिय मिट गई, बढ़ती जिम्मेवारियो संग नादानिया सिमट गई, कभी वक्त जाया करते थे मोहल्लो के चौराहों पे, आज एक कमरे में ही जिंदगी बंध गई। ©Shayrana Jindagi"

 वक्त के साथ थोड़ी मनमानिय मिट गई, 
बढ़ती जिम्मेवारियो संग नादानिया सिमट गई, 
कभी वक्त जाया करते थे मोहल्लो के चौराहों पे, 
आज एक कमरे में ही जिंदगी बंध गई।

©Shayrana Jindagi

वक्त के साथ थोड़ी मनमानिय मिट गई, बढ़ती जिम्मेवारियो संग नादानिया सिमट गई, कभी वक्त जाया करते थे मोहल्लो के चौराहों पे, आज एक कमरे में ही जिंदगी बंध गई। ©Shayrana Jindagi

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