"सीखनी है तमीज़, बातों में अदब भी
आता नहीं छुपाना, न कोई सलीक़ा भी
हूँ मैं बे-ढंग सा, रहता हूँ बे-तरतीब
प्रश्न ये मन का, इंसान बनूँ या क़िस्म !
सीखनी है तमीज़, बातों में अदब भी !!
?..........¿¿"
सीखनी है तमीज़, बातों में अदब भी
आता नहीं छुपाना, न कोई सलीक़ा भी
हूँ मैं बे-ढंग सा, रहता हूँ बे-तरतीब
प्रश्न ये मन का, इंसान बनूँ या क़िस्म !
सीखनी है तमीज़, बातों में अदब भी !!
?..........¿¿