मैं सच कि मुर्ती नहीं बनना चाहती ना ही चाहत कि . | हिंदी कविता

"मैं सच कि मुर्ती नहीं बनना चाहती ना ही चाहत कि ...... मेरे भी कुछ वजुद है मेरे भी कुछ जख्म हैं मुझे भी धोखे नसीब हुए है दिल मेरा भी टुटा हैं आंसु मेरे भी छलके है मुझे भी किसीकि तलाश है मैं भी एक आरजु हूं एक हंसीन जमाने का भाग हु जमीं पे पाँव आसमान से भरे पंख मेरे भी है.... डर मुझे भी सताता है हौसलें मेरे भी टुटते है रोज मिट जाने के खयाल आ जाते है मैं नहीं हार सकती क्योंकि मुझे मेरी मंजिल से मिलना बाकि है ..... कुछ कर जाना बाकी है तुम से भी नहीं मिली खुद से मिलना भी बाकी है...! हमने सिर्फ पंख दिखाए है अस्सल में उडना बाकि हैं..............!! ©SUREKHA THORAT"

 मैं सच कि मुर्ती नहीं बनना चाहती 
ना ही चाहत कि  ......
मेरे भी कुछ वजुद है 
मेरे भी कुछ जख्म हैं 
मुझे भी धोखे नसीब हुए है
दिल मेरा भी टुटा हैं 
आंसु मेरे भी छलके है 
मुझे भी किसीकि तलाश है
मैं भी एक आरजु हूं 
एक हंसीन जमाने का भाग हु 
जमीं पे पाँव आसमान से भरे पंख 
मेरे भी है....  
डर मुझे भी सताता है
हौसलें मेरे भी टुटते है
रोज मिट जाने के खयाल आ जाते है 
मैं नहीं हार सकती क्योंकि मुझे मेरी मंजिल से 
मिलना बाकि है .....
कुछ कर जाना बाकी है
तुम से भी नहीं मिली 
खुद से मिलना भी बाकी है...!
हमने सिर्फ पंख दिखाए है
अस्सल में उडना बाकि हैं..............!!

©SUREKHA THORAT

मैं सच कि मुर्ती नहीं बनना चाहती ना ही चाहत कि ...... मेरे भी कुछ वजुद है मेरे भी कुछ जख्म हैं मुझे भी धोखे नसीब हुए है दिल मेरा भी टुटा हैं आंसु मेरे भी छलके है मुझे भी किसीकि तलाश है मैं भी एक आरजु हूं एक हंसीन जमाने का भाग हु जमीं पे पाँव आसमान से भरे पंख मेरे भी है.... डर मुझे भी सताता है हौसलें मेरे भी टुटते है रोज मिट जाने के खयाल आ जाते है मैं नहीं हार सकती क्योंकि मुझे मेरी मंजिल से मिलना बाकि है ..... कुछ कर जाना बाकी है तुम से भी नहीं मिली खुद से मिलना भी बाकी है...! हमने सिर्फ पंख दिखाए है अस्सल में उडना बाकि हैं..............!! ©SUREKHA THORAT

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