White पल्लव की डायरी
गुजर बसर से उभरे आम इंसान
तब सोच अपने सिर पर छत की होती है
किरायों में फूंक डाले लाखो हजारो
बचत अब कहाँ होती है
राशन पढ़ाई दवाई के दबाबो में रहते
हर महीने कमायी कम पड़ जाती है
सपनो का घर कैसे सजाये
अधपर लटके फ्लैटों के दाम बढ़ते जाते है
बेध अवैध के इसने लफड़े है
नोटिसों से हम फस जाते है
कुल मिलाकर तलवार लटकती रहती जीवन मे
शुकुन भरी जिंदगी आम इंसान जी नही पाते है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
#sad_shayari गुजर बसर से उभरे इंसान