डस्ती है आँखे और चेहरा रुख मोड़ जाता है अजीबोगरी | हिंदी Poetry

"डस्ती है आँखे और चेहरा रुख मोड़ जाता है अजीबोगरीब दहशत के बीच दहलीज तक साँसे तोड़ जाता है रहनुमा सा कोई बसर है जो आधी रात मे आधा हिस्सा जोड़ जाता है बख्तावर है या भ्रम है नाकामिल कुछ भी नहीं दरख्तों से झांकता सादगी से रूह के दरमियाँ रूह छोड़ जाता है.... ©chandni"

 डस्ती है आँखे और चेहरा 
रुख मोड़ जाता है

अजीबोगरीब दहशत के बीच
दहलीज तक साँसे
 तोड़ जाता है

रहनुमा सा कोई बसर है जो
आधी रात मे आधा
हिस्सा जोड़ जाता है

बख्तावर है या भ्रम है
नाकामिल कुछ भी नहीं
दरख्तों से झांकता 

सादगी से रूह के दरमियाँ
रूह छोड़ जाता है....

©chandni

डस्ती है आँखे और चेहरा रुख मोड़ जाता है अजीबोगरीब दहशत के बीच दहलीज तक साँसे तोड़ जाता है रहनुमा सा कोई बसर है जो आधी रात मे आधा हिस्सा जोड़ जाता है बख्तावर है या भ्रम है नाकामिल कुछ भी नहीं दरख्तों से झांकता सादगी से रूह के दरमियाँ रूह छोड़ जाता है.... ©chandni

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