डस्ती है आँखे और चेहरा
रुख मोड़ जाता है
अजीबोगरीब दहशत के बीच
दहलीज तक साँसे
तोड़ जाता है
रहनुमा सा कोई बसर है जो
आधी रात मे आधा
हिस्सा जोड़ जाता है
बख्तावर है या भ्रम है
नाकामिल कुछ भी नहीं
दरख्तों से झांकता
सादगी से रूह के दरमियाँ
रूह छोड़ जाता है....
©chandni
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