खवाब से अब ज़रा जगने लगा हूँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूं।
उड़ता था शायद कभी ऊँची हवा में,
जमीं पर अब पैदल चलने लगा हूँ।
लफ़्ज़ों की मुझको ज़रूरत नहीं है,
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगा हूँ।
थक जाता हूं अक्सर अब शोर से,
खामोशियों से बातें करने लगा हूँ।
दुनियाँ की बदलती तस्वीर देख कर,
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगा हूँ।
नफ़रत के ज़हर को मिटाना ही होगा,
इरादा यह मज़बूत करने लगा हूँ।
परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे,
मैं अकेला ही आगे बढ़ने लगा हूँ।
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©Rakesh(RK)
#roshni