कुछ परिवारों में चिराग नहीं होते, वहाँ रोशनी घर जगमगाती है,
जहाँ बेटे नहीं होते साहब, वहाँ बेटियाँ फर्ज निभाती है,
समाज के ताने सहकर भी, परिवार की शान बढ़ाती है,
यह यूँही नहीं पापा की माया, और माँ की छाया कहलाती है।
माँ-बाबा से प्यार अधिक उसे, भाई से भी लाड़ लड़ाती है,
छोटी बहना के मन भाव को, बिना पूछे वो पढ़ जाती है,
दादा-दादी के जीवन में, यह अनोखा किरदार निभाती है,
उनके बुढ़ापे के लम्हों में, रंग नए यूँ बेहिसाब भर जाती है।
न जाने क्यों ये दुनिया बेटी को, पराया धन बतलाती है,
यह बेटी ही तो है जनाब जो, हर जख्म पर मरहम लगाती है,
जिस घर में रखती है पाँव, लक्ष्मी सा वरदान बन जाती है,
दुःख की घड़ियों में भी ये, खुशियों की ज्योत जगाती है।
इच्छा रखती बड़ी नहीं बहुत, ये तो बस सम्मान चाहती है,
लड़का लड़की से बेहतर, यह फर्क समझ नहीं पाती है,
तुम इनको समझो थोड़ा सा, यह तुम्हें तुमसे ज्यादा समझ जाती है,
एक खुशी जो दो इनको तुम, ये तुम पर जिस्मों जान लुटाती है।
©AK Ajay Kanojiya
" कुछ परिवारों में चिराग नहीं होते, वहाँ रोशनी घर जगमगाती है,
जहाँ बेटे नहीं होते साहब, वहाँ बेटियाँ फर्ज निभाती है,
समाज के ताने सहकर भी, परिवार की शान बढ़ाती है,
यह यूँही नहीं पापा की माया, और माँ की छाया कहलाती है।"
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