ये सिग्रेट,ये चाय,ये जाम ऐसे ही नहीं बनाई होगी बनाने वालों ने,
शायद इन्होने भी किसी से बेपनाह मुहब्बत की होगी,
टुटा होगा कभी इनका भी दिल मेरी ही तरह ,
घर बर्बाद किसी ने इनका भी किया होगा,
रोया होगा कभी मेरी ही तरह काली रातों में,
और सुबह उठकर ज़माने के आगे मुस्कुरा होगा.
(इम्तियाज भारती)
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