Autumn किस्मत ने तो मिलाना चहा था हमे,
पर लकीरों में तुम थे ही नही।
चाहत तो तुम्हें देखते ही हो गयी,
पर इज़हार की घड़ी में तुम थे ही नही।
के भुला दे तुम्हे तो कैसे भुला दे,
तुम्हारे अलावा मेरा कोई है भी नही।
मन्नते करू तुम्हें पाने की आखिर कब तक,
अब दुआएं क़ुबूल ने वाला कोई है भी नही।
के देख लू तुम्हें पल भर सँजो लूं इन आँखों मे,
पता नही की अब हमारा मिलना है भी या नही।।
©shubhangi sharma