हर सुबह मैं नींद से उठ कर, अपने आपको बाहर धकेलता ह

"हर सुबह मैं नींद से उठ कर, अपने आपको बाहर धकेलता हूँ चाहे काले घने बादल हो या हो तूफान, नहीं मैं डरता और थमता हूँ मन तो मेरा भी करता है पल दो पल और सोने का, मीठे सपनों में खोने का पर मेरे हौसले हैं इतने बुलंद, कि मैं नाम नहीं लेता सुखद अभिराम का मैं निरंतर दौड़ता चला जाता हूँ, नज़रंदाज कर पीड़ा को मैं रफ्तार और बढ़ाता हूँ, जब मेरा रोम रोम कहता है रुकने को डर तो मुझे भी लगता है फासला देख कर मंजिल से पर मंजिल की किस को फ़िकर, जब प्यार हो राहों पर चलने से"

 हर सुबह मैं नींद से उठ कर, अपने आपको बाहर धकेलता हूँ 
चाहे काले घने बादल हो या हो तूफान, नहीं मैं डरता और थमता हूँ 

मन तो मेरा भी करता है पल दो पल और सोने का, मीठे सपनों में खोने का
पर मेरे हौसले हैं इतने बुलंद, कि मैं नाम नहीं लेता सुखद अभिराम का 

मैं निरंतर दौड़ता चला जाता हूँ, नज़रंदाज कर पीड़ा को 
मैं रफ्तार और बढ़ाता हूँ, जब मेरा रोम रोम कहता है रुकने को 

डर तो मुझे भी लगता है फासला देख कर मंजिल से 
पर मंजिल की किस को फ़िकर, जब प्यार हो राहों पर चलने से

हर सुबह मैं नींद से उठ कर, अपने आपको बाहर धकेलता हूँ चाहे काले घने बादल हो या हो तूफान, नहीं मैं डरता और थमता हूँ मन तो मेरा भी करता है पल दो पल और सोने का, मीठे सपनों में खोने का पर मेरे हौसले हैं इतने बुलंद, कि मैं नाम नहीं लेता सुखद अभिराम का मैं निरंतर दौड़ता चला जाता हूँ, नज़रंदाज कर पीड़ा को मैं रफ्तार और बढ़ाता हूँ, जब मेरा रोम रोम कहता है रुकने को डर तो मुझे भी लगता है फासला देख कर मंजिल से पर मंजिल की किस को फ़िकर, जब प्यार हो राहों पर चलने से

#Love_for_running

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