अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है बस्तियों छोड़कर ज | हिंदी शायरी

"अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है बस्तियों छोड़कर जाने को कहा जाता है पत्तियां रोज गिरा जाती है ज़हर यहां और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है मोहब्बत का पैगाम देने वाली एक और आवाज आज शांत हो गई"

 अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है बस्तियों छोड़कर जाने को कहा जाता है पत्तियां रोज गिरा जाती है    ज़हर यहां और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है
मोहब्बत का पैगाम देने वाली एक और आवाज आज शांत हो गई

अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है बस्तियों छोड़कर जाने को कहा जाता है पत्तियां रोज गिरा जाती है ज़हर यहां और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है मोहब्बत का पैगाम देने वाली एक और आवाज आज शांत हो गई

#RIPRahatIndori

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