White मैं कहां से शुरू करूं
कुछ भी तो आसान नहीं रहा कभी
ये जीवन उस दिए कि भांति रहा
जिसे एक मन्नत मांग कर
गंगा में बहा दिया गया था
न ये जाने सोचे
कि ये छोटा सा दिया
कितनी दूर जाएगा
क्या ये उस देवता तक पहुंच पाएगा
जो नदी के अंतिम छोर पर बैठे
मुरादें पूरी करता है?
या डूब जाएगा कहीं बीच में ही
लहरों से कभी लड़ता
तो कभी उनके भरोसे हो जाता
ये दिया
न जाने कितनी उम्मीदों
और कितनों की आशाएं
चलता है लेकर अपने साथ
छोटा सा
टिमटिम करता
ये गंगा में बहता दिया...
स्पृहा
©मलंग
#spriha