पत्थर नहीं कांच हूं.. मुझसे जरा संभल के उलझना ट | हिंदी शायरी

"पत्थर नहीं कांच हूं.. मुझसे जरा संभल के उलझना टूटे अगर हम तो‌ ज़ख़्म तुम्हारे हाथों में भी आएंगे..! ©Shalini Nigam"

 पत्थर नहीं कांच हूं.. 
मुझसे जरा संभल के उलझना 
 टूटे अगर हम 
तो‌ ज़ख़्म तुम्हारे हाथों में भी 
आएंगे..!

©Shalini Nigam

पत्थर नहीं कांच हूं.. मुझसे जरा संभल के उलझना टूटे अगर हम तो‌ ज़ख़्म तुम्हारे हाथों में भी आएंगे..! ©Shalini Nigam

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