वह जल गया तो खल गया काली कलूटी रात को ।
सह न पाई वह बेचारी ज्योति के आघात को ।।
तिलमिलाकर झींगुरों से शोर करवाती रही ।
उल्लुओं की टोलियों से मुझको धमकाती रही ।।
मैं भी पूरी रात चुपचाप समझाता रहा
वह रूदन करती रही मैं भैरवी गाता रहा।।
जिन्दगी में सामना जब भी कभी हो रात से ।
दोस्ती करना न कभी बदशकल बदजात से ।।
रोशनी से दुश्मनी जिनका शाश्वत धर्म हो।
ओर ऐसे धर्म पर आती न जिनको शर्म हो।।
उनके लिए संकल्प की बस एक तीली चाहिए ।
याद रखना आंसुओं में वह न गीली चाहिए ।।
........बाल कवि बैरागी
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©Harsh Sharma
#NightRoad