चलो हम कहीं जाएं अपने ही भितर, मन दर्पण की धूल को | हिंदी शायरी

"चलो हम कहीं जाएं अपने ही भितर, मन दर्पण की धूल को आत्म निरीक्षण से‌ साफ करे, बीते लोकडाउन के समय जैसा मन फिर दुःखी तो ना हो। बाहर जाने हमारा जो मन तरफडा रहा था जो बेवजह !, भटकती आत्मा की तरह इधर उधर घूमने की आदत ही बना डाली थी, हमने जो बेवजह ! Rashmikant J Dave Ahmedabad Gujarat rjdave72@gmail.com ©Rashmikant J Dave rjdave72"

 चलो हम कहीं जाएं
अपने ही भितर,
मन दर्पण की धूल को 
आत्म निरीक्षण से‌ साफ करे,
बीते लोकडाउन के समय जैसा 
मन फिर दुःखी तो ना हो। बाहर जाने हमारा जो मन तरफडा रहा था
जो बेवजह !,  

भटकती आत्मा की तरह
इधर उधर घूमने की
आदत ही बना डाली थी, हमने
जो बेवजह !
Rashmikant J Dave
Ahmedabad Gujarat rjdave72@gmail.com

©Rashmikant J Dave rjdave72

चलो हम कहीं जाएं अपने ही भितर, मन दर्पण की धूल को आत्म निरीक्षण से‌ साफ करे, बीते लोकडाउन के समय जैसा मन फिर दुःखी तो ना हो। बाहर जाने हमारा जो मन तरफडा रहा था जो बेवजह !, भटकती आत्मा की तरह इधर उधर घूमने की आदत ही बना डाली थी, हमने जो बेवजह ! Rashmikant J Dave Ahmedabad Gujarat rjdave72@gmail.com ©Rashmikant J Dave rjdave72

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